दोस्तों, पुरानी हिन्दी फिल्मों में प्यार की शुरुआत अक्सर लाइब्रेरी में हुआ करती थी। लड़का और लड़की किताबें लेकर एक दूसरे से टकरा जाया करते थे। किताबें जमीन पर गिरती थी और साथ ही उनके दिल भी।
हालांकि फिर पूरी मूवी में कहीं भी उन्हें एक साथ किताबें पढ़ते हुए नहीं दिखाया जाता था और यही डायरेक्टर गलती कर दिया करते थे।
अगर पेड़ों के इर्दगिर्द नाचने के साथ ही हिंदी फिल्मों में कपल्स को एक साथ किताबें पढ़ते हुए भी दिखाया जाता तो शायद यूथ इंस्पायर होकर किताबें पढ़ना शुरू भी कर देता।
खैर, कोई बात नहीं, मैं आपको बताने वाला हूँ यह 3 किताबें जो हर इंसान को ज़रूर पढ़नी चाहिए। यह तीनों किताबें उन सभी के लिए हैं जो किसी न किसी रिलेशनशिप में हैं या होने वाले हैं। चाहे आप शादीशुदा जोड़े हो या किसी के अभिभावक हो।
गोह
आइए बताता हूं आपको आज की मेरी पहली किताब के बारे में। आज की मेरी पहली किताब है महान बांग्ला साहित्यकार महाश्वेता देवी द्वारा लिखी गई गोह।
महाश्वेता देवी की गोह सन् 2010 में प्रकाशित हुई एक मनोवैज्ञानिक विषय को लेकर ये उपन्यास लिखा गया है और इसका हिन्दी अनुवाद किया है सुशील गुप्ता ने।
एक छोटा सा मासूम बच्चा है जिसकी परवरिश अपने माँ बाप यानी तुहिन और रंजू के साथ एक सिंगल फैमिली में होती है। वो आम बच्चों की तरह नटखट और शरारती नहीं है बल्कि इसके विपरीत वह काफी गंभीर, संवेदनशील और शांत स्वभाव का बच्चा है। वो बाकी बच्चों से अलग है ये जानते हुए भी वो के मां बाप बजाय इसके कि उस पर ज्यादा ध्यान दिया जाए। वो गांव की तरफ से बिल्कुल बेफिक्र हो जाते हैं।
इसी बीच जब कुछ दिनों के लिए गोह की मां रंजू किसी काम से दिल्ली जाती है तो गोह को मौका मिलता है अपने पिता के करीब आने का और तुहिन को मौका मिलता है अपने बेटे को समझने का, उसे पहचानने का। गोह को इस तरह से पिता के रूप में एक दोस्त भी मिल जाता है। लेकिन मां के वापस आते ही एक ऐसी घटना सामने आती है जो गोह को समय से पहले ही बड़ा कर देती है।
इस किताब में एक मासूम बच्चे के अंतर्द्वंद, उसकी अस्वाभाविक तलाश का जो चित्रण आपको देखने को मिलेगा वो वाकई बहुत बेहतरीन है।
महाश्वेता देवी की सशक्त लेखनी आपको मुग्ध कर देगी और साथ ही यह किताब आपको सहेजकर रखने के लिए प्रेरित करेगी। यानि आप इस किताब को सहेजकर ज़रूर रखना चाहेंगे। तो ये किताब ज़रूर पढ़े।
हाँ, एक बात जरूर कहना चाहता हूं कि इसके अनुवाद में थोड़ी सी त्रुटियां हैं, जो आपको confused कर सकती हैं। किताब बहुत अच्छी है और हर पेरेंट को और हर इंसान को पढ़नी चाहिए।
वही बात
आज की जो मेरी दूसरी किताब है उसे लिखा है महान साहित्यकार कमलेश्वर ने और किताब का नाम है वही बात। कमलेश्वर हिन्दी साहित्य में बहुत ऊंचा स्थान रखते हैं और इन्होंने हर विधा में अपनी कलम चलाई है और कमाल का लिखा है।
मतलब कहते हैं ना कि जिस विधा को छुआ उसमें ही इन्होंने कमाल कर दिया। हालांकि इनकी वही बात एक शॉर्ट नॉवेल है और इसकी कहानी है समीरा की जो अपने पति के तबादला हो जाने के बाद यानी पति के ट्रांसफर के बाद एक ऐसे इलाके में रहने आ जाती है जो शहर से काफी दूर जंगली और सुनसान इलाका है। समीरा का पति प्रशांत अपने काम में इस कदर डूबा हुआ होता है कि वो समीरा को बिल्कुल वक्त नहीं दे पाता।
प्रशांत बहुत ही महत्वकांक्षी इंसान है और हमेशा अपने काम को, अपनी प्रोफेशनल लाइफ को वो अपने रिश्तों से ऊपर तरजीह देता है। शुरुआत में एक अच्छी पत्नी की तरह समीरा अपने पति का वक्त पाने का इन्तजार करती है लेकिन धीरे धीरे अकेलेपन से परेशान हो जाती है और फिर एक दिन वो तलाक की मांग कर बैठती है।
तलाक हो भी जाता है। तलाक के बाद समीरा दूसरी शादी करती है और फिर कहानी में घटती है। वही बात, वही बात जो एक बार और हो चुकी है। इस कहानी में एक स्त्री की इच्छाओं और उसके अंतर्द्वंद का चित्रण पढ़कर आप चकित रह जायेंगे।
कमलेश्वर ने बहुत ही बेहतरीन तरीके से और बहुत ही सटीक चित्रण एक स्त्री के मनोभावों का किया है और मैं एक बार फिर से ये कहना चाहूंगी कि हर कपल को यह किताब एक बार ज़रूर पढ़ लेनी चाहिए।
ये हर कपल की उन छोटी बड़ी गलतियों पर उनका ध्यान दिलाएगी जो जाने अनजाने में उनसे हर रोज हो जाया करती है। साथ ही ये किताब एक सवाल भी उठाती है कि अगर पुरुष की महत्वकांक्षा के चलते स्त्री अकेलापन महसूस करने लगे तो क्या उसे अधिकार नहीं कि वो इस रिश्ते से खुद को आजाद कर ले।
इसलिए हर couple को यह किताब ज़रूर एक बार पढ़ लेनी चाहिए। हां, ये ज़रूर कहूंगा कि teenagers के लिए इस किताब में कुछ खास नहीं है।
बिराज बहू
चलिए अब आगे बढ़ता हूँ अपनी तीसरी और आज की आखरी किताब की ओर जिसे लिखा है महान और जाने माने बांग्ला साहित्यकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने। किताब का नाम है बिराज बहू।
शरतचंद्र का परिचय देने की जरूरत तो मुझे नहीं लगती क्योंकि इन्हें तो सभी जानते हैं। फिर भी इतना जरूर कहूंगी कि शरत चंद्र हमेशा नारी विषयों पर ही लिखते थे और नारी प्रधान ही इनके उपन्यास हुआ करते थे।
यह भी एक लघु उपन्यास है जो बिराज नामक औरत के इर्दगिर्द घूमता है। इसका प्रकाशन हुआ 1914 में और सन् 1954 में। बिमल रॉय के निर्देशन में इस किताब पर एक बांग्ला फिल्म भी बनी।
किताब की कहानी का जो बैकग्राउंड है, यानी जो पृष्ठभूमि है, वह बंगाल का एक छोटा सा गांव है, जहां बिराज की शादी नीलाम्बर के साथ बहुत कम उम्र में हो जाती है। बिराज उन संस्कारों में पली बढ़ी है, जहां पति को ही परमेश्वर मानने का रिवाज है।
इसलिए बिराज अपने कष्ट में रहकर भी अपने पति की सुख सुविधा का पूरा ध्यान रखती है। न तो वह पति के अलावा किसी पराए मर्द से बात करती है। नहीं, ऐसा करने वालों को वह माफ करती है। उन दोनों की गृहस्थी सुख चैन से कट रही होती है कि इसी बीच नीलाम्बर अपनी छोटी बहन पुंडी की शादी करता है और शादी के बाद ससुराल वालों की मांग पूरी करते करते दोनों पति पत्नी कर्ज में डूब जाते हैं।
इतना ही नहीं गांव के जमींदार के एक लड़के की बुरी नजर भी बिराज पर पड़ जाती है और यहीं से चीजें बिगड़नी शुरू हो जाती हैं। बिराज इतनी स्वाभिमानी कि अपनी देवरानी से मदद तक नहीं स्वीकार करती। साथ ही उसके संस्कार ऐसे कि अपने पति को भूखा भी नहीं रख सकती है।
और आखिरकार यही स्वाभिमानी स्त्री एक रात दो मुट्ठी चावल की भिक्षा मांगकर लाती है ताकि अपने पति को वह खाना खिला सके। नीलांबर अपनी पत्नी के इस प्रेम को समझ नहीं पाता और उसका इतनी देर रात घर लौटने को शक की नजर से देखता है।
वह उसके चरित्र पर उंगली उठाता है और यह बात बिराज को बर्दाश्त नहीं होती और वह एक बहुत बड़ा कदम उठा लेती है।
इस किताब में भी शरत चंद्र ने अपनी खासियत का परिचय देते हुए बिराज के मनोभावों का, उसके संस्कारों और उसके स्वाभिमानी व्यक्तित्व के बीच चल रहे द्वंद का बहुत ही सटीक चित्रण किया है। पढ़कर आश्चर्य होता है कि एक पुरुष लेखक होकर स्त्री के मनोभावों को इतने सटीक तरीके से कैसे बयां कर सकता है।
यही शरतचंद्र की खासियत है। यह किताब हर व्यक्ति को पढ़नी चाहिए। अगर आप couple है तो पढ़नी चाहिए और मेरे ख्याल से यह हर किसी के लिए है। तो हर किसी को यह किताब जरूर एक बार पढ़ लेनी चाहिए।
हां, एक बात जरूर कहना चाहूंगा अगर मैं कुछ निगेटिव प्वाइंट के बारे में आपका ध्यान दिलाऊं तो वह यह यह उस दौर की हर किताब के साथ हुआ करता है कि इन किताबों में स्त्रियों को लेकर के आदर्श इतने ऊंचे रख दिए जाते हैं कि अगर आज के दौर के लोग इन्हें पढ़े तो एक भारीपन सा महसूस होता है।
लेकिन फिर भी इस किताब में ऐसा बहुत कुछ है जिसे आप पढ़ना चाहेंगे, बार बार पढ़ना चाहेंगे और सहेजकर अपने bookshelf में रखना भी चाहेंगे।
निष्कर्ष : 3 किताबें जो हर इंसान को ज़रूर पढ़नी चाहिए
तो यह थी मेरी आज की तीन किताबे जिनके बारे में मैंने आज आपको बताया। उम्मीद करता हूं कि आपको यह लेख बहुत पसंद आया होगा। आप इन किताबो को ज़रूर पढ़े और दोस्तों के साथ इस पोस्ट को शेयर भी करे।
सवाल जवाब
किताबें पढ़ने की आदत कैसे डालें?
आपको हर दिन थोड़ा समय निकलना चाहिए। अगर आपके पास ज़्यादा समय नहीं हैं तो जितना समय मिले उतने समय में थोड़ा थोड़ा पढ़ना शुरू करे। अगर किताब आपके पसंद कि हो तो आपको पढ़ने में काफी मज़ा आएगा।
ज्यादा किताबें पढ़ने से क्या होता है?
अच्छी किताबे पढ़ने से हमारे मन में सकारात्मक विचार आते हैं, जीवन में बदलाव आते है, इंसान मुश्किल समय में सही फैसले ले पाता है।